Wednesday, August 8, 2012
no image

premmadhuray
jivan ka ras
Thursday, July 19, 2012
HARIYALI TEEJ









Hariyali Teej or Hariyali Teej Vrat (Singhara Teej or Teejan) is a vrat or puja observed on the third day just after Hariyali Amavasya, in Shravan Month (July – August) of North Indian Hindi calendar. In 2012 Hariyali Teej date is July 22, Sunday. This vrata is dedicated to Lord Shiva and Goddess Parvati. It is observed mainly by married and unmarried women of Rajasthan, Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, etc.
On Hariyali Teej vrat day, Lord Shiva and Goddess Parvati are worshipped. Women wear green bangles to symbolize the lush greenery during Sawan mahina and their prosperous life. Moon God is also worshipped in the evening after breaking the fast. Women also adorn their hands with Mehandi designs. Hariyali Teej is also known as Choti Teej.


Saturday, May 12, 2012
मेरी माँ





यह बात तब कि है जब भगवान को दिन-रात कायनात का निर्माण करते हुए छठा दिन था और वो "मां" का निर्माण कर रहे थे। जब वे अपने काम में तल्लीन थे, तभी उनके सामने एक देवदूत आ खड़ा हुआ और उसने उनसे पूछा, "आप इस कृति को बनाने में इतना वक्त क्यों लगा रहे हैं?"  तब भगवान ने जवाब दिया, "दरअसल मुझे मेरी इस रचना को अनेक विलक्षणताओं के साथ बनाना है। जैसे, इसे सदैव निर्मल रहना है, साथ ही इसके अंग-अंग से सजीवता झलकनी चाहिए। इसके शरीर में 200 गतिमान हिस्से हैं। यह एक रचना होगी, जो थोड़ी सी चाय-कॉफी और बचे हुए खाने के सहारे भी जीवित रह सकेगी।"  "इसकी गोद इतनी विशाल होगी कि जिसमें तीन शिशु एक साथ आ सकें...। जिसके एक चुंबन से छिले हुए घुटने से लेकर टूटे हुए दिल तक , यानी सब कुछ ठीक हो जाएगा। इसे मैं छह हाथ भी देने जा रहा हूं।"  इन विलक्षण विशिष्टताओं को सुनकर दंग देवदूत बोला, "क्या आप इसे छह हाथ देने जा रहे हैं, पर इसकी क्या आवश्यकता?"  भगवान ने जवाब दिया, "अरे. असल समस्या ये छह हाथ नहीं हैं, मैं तो तीन जोड़ी आंखों को लेकर चिंतित हूं जो हर मां के पास होनी ही चाहिएं।" देवदूत ने कहा, "और तीन जोड़ी आंखें होने पर ही मां का मानक मॉडल तैयार होगा?"  भगवान ने हां में सिर हिलाया और बोले, "तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो। एक जोड़ी आंखें बंद दरवाजे से भी झांकने में सक्षम होंगी, ताकि वह अपने बच्चों से पूछ सके कि वे क्या कर रहे हैं, जबकि वह अपनी इन आंखों के कारण पहले ही जानती होगी कि उसके बच्चे क्या कर रहे हैं।"  "आंखों की दूसरी जोड़ी सिर के पीछे होगी, ताकि वह हर उस बात को जान सके जिसे उसको जानने की जरूरत है और लोग सोच भी न सकें कि इसकी जानकारी उसे हो भी सकती है।"  "और तीसरी जोड़ी आंखें उसके माथे पर होंगी ताकि वह राह से भटके अपने बच्चों पर नजर रख सके और बगैर एक शब्द कहे अपने बच्चों से कह सके कि वह उनसे कितना प्यार करती है।"  अब देवदूत ने भगवान को रोकने की कोशिश की, "भगवान, आपने आज दिन भर में काफी काम कर लिया है। आप काम खत्म करने के लिए कल का इंतजार भी तो कर सकते हैं।"   भगवान ने प्रतिरोध किया, बोले, "नहीं, मैं नहीं कर सकता। मैं अपनी इस कृति को पूरा करने के बहुत करीब हूं जो मेरे दिल के काफी करीब है। यह एक ऎसी कृति है, जब वो बीमार होगी तो अपना इलाज और देखभाल खुद करेगी। जिसे बहुत कम संसाधनों में छह लोगों का पेट पालना आता होगा।" अब देवदूत भगवान के करीब आ गया और उसने उस औरत को छुआ, चौंककर बोला, "लेकिन भगवान आपने तो इसे बहुत ही कोमल बनाया है।"  भगवान सहमत होते हुए बोले, "हां, यह बहुत ही कोमल है, लेकिन मैंने इसे बहुत कठोर भी बनाया है। तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि यह क्या-क्या सहन कर सकती है और क्या-क्या काम कर सकती है।" "तो क्या यह सोच भी सकेगी?" देवदूत ने पूछा।  अब भगवान ने जवाब दिया, "यह न केवल सोच सकेगी, बल्कि तर्क दे सकेगी, समस्याओं को सुलझा सकेगी।"  तभी देवदूत ने कुछ नोटिस किया। वह भगवान की उस कृति तक पहुंचा और उसने उसके गालों को छुआ और तुरंत बोला, "अरे भगवान, ऎसा लगता है कि आपने इस रचना में एक कमी छोड़ दी है। मैंने कहा था न कि आप इस कृति को ज्यादा ही विलक्षणताएं प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं।" भगवान ने प्रतिरोध किया, "नहीं, यह कोई कमी नहीं है। ये आंसू हैं।"  "ये आंसू किस लिए?" देवदूत ने पूछा। भगवान ने जवाब दिया, "ये आंसू इसका अपनी खुशी, अपना दुख, अपनी निराशा, अपने दर्द, अपने अकेलेपन और यह तक कि अपने गर्व को भी जताने का तरीका होगा।" अब देवदूत काफी प्रभावित था और वह बोला..."भगवान आप महान् हैं, आपने मां को सब कुछ सोचकर बनाया है। आपकी यह कृति सर्वोत्तम है।"  इरमा बॉमबैक
Saturday, April 21, 2012
no image


उड़ीसा प्रान्त में भुवनेश्वर से कुछ दूरी पर स्थित समुद्र के किनारे भगवान जगन्नाथ का यह मन्दिर अपनी भव्य एवं मनोहारी सुन्दरता के कारण धर्म और आस्था का केन्द्र माना जाता है। भारत में मनाए जाने वाले महोत्सवों में जगन्नाथपुरी की रथयात्रा सबसे महत्त्वपूर्ण है। यह परंपरागत रथयात्रा केवल भारत में ही नहीं, विदेशी पर्यटकों के भी आकर्षण का केंद्र है। श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के समकक्ष माना जाता है। सागर तट पर बसे पुरी शहर में होने वाले 'जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव' के समय आस्था का जो विराट वैभव देखने को मिलता है, वह और कहीं दुर्लभ है। देश-विदेश से लाखों लोग इस पर्व के साक्षी बनने हर वर्ष यहाँ आते हैं। देश के चार पवित्र धामों में एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं। साथ ही यहाँ बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। दर्शन वर्तमान रथयात्रा में जगन्नाथ को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, उनमें विष्णु, कृष्ण और वामन और बुद्ध हैं। जगन्नाथ मंदिर में पूजा, आचार-व्यवहार, रीति-नीति और व्यवस्थाओं को शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बियों ने भी प्रभावित किया है। रथ का रूप श्रद्धा के रस से परिपूर्ण होता है। वह चलते समय शब्द करता है। उसमें धूप और अगरबत्ती की सुगंध होती है। इसे भक्तजनों का पवित्र स्पर्श प्राप्त होता है। रथ का निर्माण बुद्धि, चित्त और अहंकार से होता है, ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथयात्रा शरीर और आत्मा के मेल की ओर संकेत करता है और आत्मदृष्टि बनाए रखने की प्रेरणा देती है। रथयात्रा के समय रथ का संचालन आत्मा युक्त शरीर करता है जो जीवन यात्रा का प्रतीक है। यद्यपि शरीर में आत्मा होती है तो भी वह स्वयं संचालित नहीं होती, बल्कि उसे माया संचालित करती है। इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के विराजमान होने पर भी रथ स्वयं नहीं चलता बल्कि उसे खींचने के लिए लोक-शक्ति की आवश्यकता होती है। इतिहास पौराणिक कथाओं के अनुसार 'राजा इन्द्रद्युम्न' भगवान जगन्नाथ को 'शबर राजा' से यहां लेकर आये थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। इस मूल मंदिर का कब निर्माण हुआ और यह कब नष्ट हो गया इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। 'ययाति केशरी' ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। वर्तमान 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल 'गंगदेव' तथा 'अनंग भीमदेव' ने कराया था। परंतु जगन्नाथ संप्रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है। पुरी का मंदिर रथयात्रा के समय भक्तों को प्रतिमाओं तक पहुँचने का अवसर मिलता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर भक्तों की आस्था केंद्र है, जहाँ पूरे वर्ष भक्तों का मेला लगा रहता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर उच्चस्तरीय नक़्क़ाशी और भव्यता लिए प्रसिद्ध है। रथोत्सव के समय इसकी छटा निराली होती है। पुरी के महान मन्दिर में तीन मूर्तियाँ हैं - भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, बलभद्र की मूर्ति, उनकी बहन सुभद्रा की की मूर्ति। ये सभी मूर्तियाँ काष्ठ की बनी हुई हैं। पुरी की ये तीनों प्रतिमाएँ भारत के सभी देवी – देवताओं की तरह नहीं होतीं। यह मूर्तियाँ आदिवासी मुखाकृति के साथ अधिक साम्यता रखती हैं। पुरी का मुख्य मंदिर बारहवीं सदी में राजा अनंतवर्मन के शासनकाल के समय बनाया गया। उसके बाद जगन्नाथ जी के 120 मंदिर बनाए गए हैं। विशाल मंदिर जगन्नाथ के विशाल मंदिर के भीतर चार खण्‍ड हैं - 1.प्रथम भोगमंदिर, जिसमें भगवान को भोग लगाया जाता है। 2.द्वितीय रंगमंदिर, जिसमें नृत्‍य-गान आदि होते हैं। 3.तृतीय सभामण्‍डप, जिसमें दर्शकगण (तीर्थ यात्री) बैठते हैं। 4.चौथा अंतराल है। जगन्‍नाथ के मंदिर का गुंबद 192 फुट ऊंचा और चवक्र तथा ध्‍वज से आच्‍छन्‍न है। मंदिर समुद्र तट से 7 फर्लांग दूर है। यह सतह से 20 फुट ऊंची एक छोटी सी पहाड़ी पर स्‍थित है। पहाड़ी गोलाकार है, जिसे 'नीलगिरि' कहकर सम्‍मानित किया जाता है। अन्‍तराल के प्रत्‍येक तरफ एक बड़ा द्वार है, उनमें पूर्व का द्वार सबसे बड़ा और भव्‍य है। प्रवेश द्वार पर एक 'बृहत्‍काय सिंह' है, इसीलिए इस द्वार को 'सिंह द्वार' भी कहा जाता है। यह मंदिर 20 फीट ऊंची दीवार के परकोटे के भीतर है जिसमें अनेक छोटे-छोटे मंदिर है। मुख्य मंदिर के अलावा एक परंपरागत डयोढ़ी, पवित्र देवस्थान या गर्भगृह, प्रार्थना करने का हॉल और स्तंभों वाला एक नृत्य हॉल है। सदियों से पुरी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे - नीलगिरि, नीलाद्री, नीलाचंल, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम और जगन्नाथ पुरी। यहां पर बारह महत्त्वपूर्ण त्यौहार मनाये जाते हैं, लेकिन इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण त्यौहार जिसने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है, वह रथयात्रा ही है। दस दिवसीय महोत्सव पुरी का जगन्नाथ मंदिर के दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्रीगणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण से हो जाता है। कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं। गरुड़ध्वज जगन्नाथ जी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है। 16 पहियों वाला यह रथ 13.5 मीटर ऊँचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग होता है। विष्णु का वाहक गरु़ड़ इसकी रक्षा करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे 'त्रैलोक्यमोहिनी' या ‘नंदीघोष’ रथ कहते हैं। तालध्वज बलराम का रथ 'तलध्वज' के नाम से पहचाना जाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊँचा 14 पहियों का होता है। यह लाल, हरे रंग के कप़ड़े व लक़ड़ी के 763 टुक़ड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को 'उनानी' कहते हैं। 'त्रिब्रा', ;घोरा', 'दीर्घशर्मा' व 'स्वर्णनावा' इसके अश्व हैं। जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह 'वासुकी' कहलाता है। पद्मध्वज या दर्पदलन सुभद्रा का रथ 'पद्मध्वज' कहलाता है। 12.9 मीटर ऊँचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कप़ड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का प्रयोग होता है। रथ की रक्षक 'जयदुर्गा' व सारथी 'अर्जुन' होते हैं। रथध्वज 'नदंबिक' कहलाता है। 'रोचिक', 'मोचिक', 'जिता' व 'अपराजिता' इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को 'स्वर्णचूडा' कहते हैं। दसवें दिन इस यात्रा का समापन हो जाता है। जगन्नाथ जी की रथयात्रा में श्रीकृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी के स्थान पर बलराम और सुभद्रा होते हैं। इस सम्बंध में कथा इस प्रकार है - एक बार द्वारिका में श्रीकृष्ण रुक्मिणी आदि राजमहिषियों के साथ शयन करते हुए निद्रा में राधे-राधे बोल पड़े। महारानियों को आश्चर्य हुआ। सुबह जागने पर श्रीकृष्ण ने अपना मनोभाव प्रकट नहीं किया। रुक्मिणी ने रानियों से बात की कि वृंदावन में राधा नाम की गोपकुमारी है जिसको प्रभु हम सबकी इतनी सेवा, निष्ठा और भक्ति के बाद भी नहीं भूल पाये है। राधा की श्रीकृष्ण के साथ रासलीलाओं के विषय में माता रोहिणी को ज्ञान होगा। अत: उनसे सभी महारानियों ने अनुनय-विनय की, कि वह इस विषय में बतायें। पहले तो माता रोहिणी ने इंकार किया किंतु महारानियों के अति आग्रह पर उन्होंने कहा कि ठीक है, पहले सुभद्रा को पहरे पर बिठा दो, कोई भी अंदर न आ पाए, चाहे वह बलराम या श्रीकृष्ण ही क्यों न हों। माता रोहिणी ने जैसे ही कथा कहना शुरू किया, अचानक श्रीकृष्ण और बलराम महल की ओर आते हुए दिखाई दिए। सुभद्रा ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया, किंतु श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की कथा श्रीकृष्ण और बलराम दोनो को ही सुनाई दी। उसको सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम अद्भुत प्रेमरस का अनुभव करने लगे, सुभद्रा भी भावविह्वल हो गयी। अचानक नारद के आने से वे पूर्ववत हो गए। नारद ने श्री भगवान से प्रार्थना की कि - 'हे प्रभु आपके जिस 'महाभाव' में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्यजन के हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे। प्रभु ने तथास्तु कहा।
रथ का निर्माण 

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण लकड़ियों से होता है। इसमें कोई भी कील या काँटा, किसी भी धातु का नहीं लगाया जाता। यह एक धार्मिक कार्य है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहा है। रथों का निर्माण अक्षय तृतीया से 'वनजगा' महोत्सव से प्रारम्भ होता है तथा लकड़ियाँ चुनने का कार्य इसके पूर्व बसन्त पंचमी से शुरू हो जाता है। पुराने रथों की लकड़ियाँ भक्तजन श्रद्धापूर्वक ख़रीद लेते हैं और अपने–अपने घरों की खिड़कियाँ, दरवाज़े आदि बनवाने में इनका उपयोग करते हैं

जगन्नाथ मंदिर पुरी महाप्रसाद

मन्दिर की रसोई में एक विशेष कक्ष रखा जाता है, जहाँ पर महाप्रसाद तैयार किया जाता है। इस महाप्रसाद में अरहर की दाल, चावल, साग, दही व खीर जैसे व्यंजन होते हैं। इसका एक भाग प्रभु का समर्पित करने के लिए रखा जाता है तथा इसे कदली पत्रों पर रखकर भक्तगणों को बहुत कम दाम में बेच दिया जाता है। जगन्नाथ मन्दिर को प्रेम से संसार का सबसे बड़ा होटल कहा जाता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने का स्थान है। इतने चावल एक लाख लोगों के लिए पर्याप्त हैं। चार सौ रसोइए इस कार्य के लिए रखे जाते हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर की एक विशेषता यह है कि मंदिर के बाहर स्थित रसोई में 25000 भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं। भगवान को नित्य पकाए हुए भोजन का भोग लगाया जाता है। परंतु रथयात्रा के दिन एक लाख चौदह हज़ार लोग रसोई कार्यक्रम में तथा अन्य व्यवस्था में लगे होते हैं। जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत होते हैं। उड़ीसा में दस दिनों तक चलने वाले एक राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्साहपूर्वक उमड़ पड़ते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि रसोई में ब्राह्मण एक ही थाली में अन्य जाति के लोगों के साथ भोजन करते हैं, यहाँ जात-पाँत का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता।

Thursday, April 5, 2012
हनुमान जयंती



        हनुमान कौन है?
  • हनुमान -जिन्होंने अपना अभिमान ख़त्म कर दिया 
  • वर्ण के आधार पर हनुमान का अर्थ-
    -जिस व्यक्ति के जीवन का द्रष्टि कोण सकारात्मक है । (गुजराती का शब्द -हकारात्मक )
    नु-
    जो स्वप्न में भी किसी के नुक्सान करने का नहीं सोचता ।
    मा
    -
    जिसको मान नहीं है ।
    न-
    नम्रता(नम्रता की मूर्ति),विनम्र, जिसका जीवन सरल है । 

  •    श्रीराम हनुमानजी से-
    श्रीराम-आप कौन है ?
    हनुमानजी- मै,
    1.  स्थूल रूप से-आपका दास हूँ ।(राम दूत मै मातु जानकी -सुन्दरकाण्ड )
    2. जीव रूप से-आपका अंश हूँ ।(ईश्वरअंश जीव अविनाशी )
    3.  अध्यात्मिक रूप से-आप और मुझ में कोई अंतर नहीं है ।(नारद  भक्ति  सूत्र)
         
  • हनुमान चालीसा में हनुमान शब्द-
          4 बार हनुमान शब्द क्यों?
     1.  ईश्वर,ब्रहम,परमात्मा,भगवान हनुमान है  |
     2.मान, बुद्धि,चित,अहंकार  हनुमान है |
    3.नाम,रूप,लीला,धाम  हनुमान है |
    4.धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष हनुमान है |

   5.सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग,कलयुग में भी हनुमान |
   6.ब्राहमण है,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र  हनुमान है |



shri hanuman chalisa-

।।दोहा।। श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारी  |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||
।।दोहा।। पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||