Thursday, April 5, 2012


        हनुमान कौन है?
  • हनुमान -जिन्होंने अपना अभिमान ख़त्म कर दिया 
  • वर्ण के आधार पर हनुमान का अर्थ-
    -जिस व्यक्ति के जीवन का द्रष्टि कोण सकारात्मक है । (गुजराती का शब्द -हकारात्मक )
    नु-
    जो स्वप्न में भी किसी के नुक्सान करने का नहीं सोचता ।
    मा
    -
    जिसको मान नहीं है ।
    न-
    नम्रता(नम्रता की मूर्ति),विनम्र, जिसका जीवन सरल है । 

  •    श्रीराम हनुमानजी से-
    श्रीराम-आप कौन है ?
    हनुमानजी- मै,
    1.  स्थूल रूप से-आपका दास हूँ ।(राम दूत मै मातु जानकी -सुन्दरकाण्ड )
    2. जीव रूप से-आपका अंश हूँ ।(ईश्वरअंश जीव अविनाशी )
    3.  अध्यात्मिक रूप से-आप और मुझ में कोई अंतर नहीं है ।(नारद  भक्ति  सूत्र)
         
  • हनुमान चालीसा में हनुमान शब्द-
          4 बार हनुमान शब्द क्यों?
     1.  ईश्वर,ब्रहम,परमात्मा,भगवान हनुमान है  |
     2.मान, बुद्धि,चित,अहंकार  हनुमान है |
    3.नाम,रूप,लीला,धाम  हनुमान है |
    4.धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष हनुमान है |

   5.सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग,कलयुग में भी हनुमान |
   6.ब्राहमण है,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र  हनुमान है |



shri hanuman chalisa-

।।दोहा।। श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारी  |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||
।।दोहा।। पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||

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